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महान व्यक्तित्व >> सम्राट अशोक

सम्राट अशोक

प्राणनाथ वानप्रस्थी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :46
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1492
आईएसबीएन :81-7483-033-2

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प्रस्तुत है सम्राट अशोक का जीवन परिचय...

अशोक सम्राट् बने

 

इस बीच पाटलिपुत्र के सम्राट् बिन्दुसार की मृत्यु हो गई। इस घटना को हुए आज दो हजार दो सौ पचास वर्ष हो गए हैं। सूचना मिलते ही अशोक राजधानी को चल दिए। उधर आगे ही मन्त्री राजकुमार सुमन के विरोध में थे। इन दिनों प्रधानमन्त्री राधागुप्तजी शासन की बागडोर संभालते थे। इन्होंने अशोक का पूरा-पूरा साथ दिया और उसे राज्य की बागडोर सौंप दी।

राज्य संभालते ही अशोक ने सारे देश में शान्ति स्थापित की। इस बड़े कार्य को करने में उसे पूरे तीन वर्ष लग गए। तीन वर्ष राज्य करने के बाद राजकुमार अशोक ने राज्य का पूरा भार उठाया। बड़ी धूमधाम से उनका राज्याभिषेक हुआ और वे राजकुमार से सम्राट् बने।

इन दिनों आप प्रतिदिन 60,000 ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद ही भोजन किया करते थे। इतिहास में लिखा है कि मौर्यवंश के सम्राट् प्रतिदिन तीन बजे प्रातःकाल उठ जाते थे और रात के बारह बजे  सोते थे। दिन-भर राज्य-कार्य और लोगों की सेवा में लगे रहते थे। इस पर भी सम्राट् अशोक की आज्ञा थी कि चाहे मैं भोजन करता होऊं, सोता होऊं या कुछ भी करता होऊं, राज्य-कार्य के लिए मुझे उसी समय सूचना मिलनी चाहिए।

उन दिनों हमारे देश में घरों पर ताले नहीं लगाए जाते थे। यूनानी इतिहासकारों का कहना है कि यहां के लोग सदा सच बोलते थे। सच बोलने में यदि उनके प्राण भी चले जाएं तो भी हंसी-खुशी अपने-आपको बलिदान तक कर देते थे, परन्तु झूठ के निकट फटकते तक न थे। 

उन दिनों विज्ञान बहुत उन्नति पर था। ऐसे-ऐसे यन्त्र और औजार थे कि एक बाल के,  चौड़ाई की ओर से, पन्द्रह टुकड़े तक कर सकते थे। शल्यचिकित्सा अर्थात् चीर-फाड़ में वे  इतने योग्य थे कि बड़ी-बड़ी दूर से लोग यहां इलाज कराने आते थे। इस चिकित्सा में  भारतीय इतिहास में सुश्रुत का नाम सदा अभिमान से लिया जाएगा।

उन दिनों धोबियों का प्रबन्ध बड़ा सुन्दर था। उनकी खास वर्दी होती थी, जिस पर कमीज के सामने और पीठ की ओर धोबी के डंडे का निशान बना होता था। इस कारण धोबी ग्राहकों के कपड़े नहीं पहन सकता था।

उस समय इस राज्य की सीमाएं बड़ी-बड़ी दूर-दूर तक फैली हुई थीं।

उत्तर दिशा में बर्फ से ढका हुआ हिमालय पर्वत इसकी रक्षा करता था। कश्मीर और नेपाल इसी राज्य के अधीन थे।

उत्तर-पश्चिम दिशा में ब्लोचिस्तान, मकरान और अफ़गानिस्तान तक राज्य फैला था।

पूर्व दिशा में ब्रह्मपुत्र नदी तक यह राज्य फैला हुआ था।

दक्षिण दिशा में यह राज्य मैसूर तक फैला हुआ था।

पश्चिम दिशा में सौराष्ट्र और जूनागढ़ इसी राज्य के अगं थे।

भारतवर्ष के पूर्वी और पश्चिमी घाट तक समुद्र की लहरों तक यह राज्य फैला हुआ था।

प्रसिद्ध इतिहास-लेखक विन्सैंट ए. स्मिथ लिखता है, ''मौर्य सम्राट् इस देश की उस सीमा तक पहुंच गए थे, जिसे पाने के लिए मुगल सम्राट् और अंग्रेज़ तड़पते ही रहे, परन्तु सफल न  हुए।''

इतने बड़े महान् राज्य को चलाने के लिए अशोक जैसे योग्य हाथों की जरूरत थी।

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    अनुक्रम

  1. जन्म और बचपन
  2. तक्षशिला का विद्रोह
  3. अशोक सम्राट् बने
  4. कलिंग विजय
  5. धर्म प्रचार
  6. सेवा और परोपकार
  7. अशोक चक्र

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